shiv jayanti 2025 तिथि नुसार इस साल 17 मार्च 2025 को हे।महाराष्ट्र में shiv jayanti 2 बार मनाई जाती हे।जन्म तारीख़ से और जन्म तिथि से।जन्म तारीख़ के हिसाब से शिव जयंती 19 Fwb. को मनाई जाती हे।
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shiv jayanti 2025 शिवाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन –
शिवाजी महाराज का जन्म शाहजी भोसले और जीजाबाई के घर हुआ। उनकी माता जीजाबाई एक धार्मिक और साहसी महिला थीं, जिन्होंने बचपन से ही शिवाजी को न्याय, धर्म और स्वराज्य का महत्व सिखाया। उनके पिता शाहजी भोसले एक कुशल योद्धा थे, जो बीजापुर सल्तनत के अधीनस्थ थे। हालांकि, शिवाजी बचपन से ही स्वतंत्रता और मराठा स्वराज्य की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध थे।
शिवाजी महाराज की शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण बचपन से ही बहुत प्रभावशाली रहा। उन्होंने विभिन्न युद्ध कौशल, रणनीति और प्रशासनिक दक्षताओं को सीखा, जिससे वे आगे चलकर एक महान शासक बने।
shiv jayanti 2025 Tithi Nusar –
1968 में महाराष्ट्र सरकार ने इतिहासकारों की एक समिति स्थापित की। एम. एन. दीक्षित इस समिति के प्रमुख थे तथा बाबासाहेब पुरन्दरे, जी.एच.खरे, बी.सी बेन्द्रे, नरहर रघुनाथ फाटक, दत्ता वामन पोतदार एवं कोल्हापुर के शिवाजी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलाधिपति अप्पासाहेब पवार इसके सदस्य थे।
इस समिति ने क साथ इस निर्णय पर सहमत हुये अँग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार फरवरी 19 को शिवाजी की जन्मतिथि माना जाये।
हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन वद्य तृतीया को भी shiv jaynti मनाई जाती हे।(shiv jayanti 2025)
शिवजयंती का इतिहास –
शिवजयंती 19वीं सदी में महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा शुरू कि गई थी , जो एक समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता थे और जो भारत में निचली जातियों के अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। महात्मा ज्योतिबा फुले का मानना था कि शिवाजी महाराज मुगलों के दमनकारी शासन के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक और आम लोगों के अधिकारों के लिए थे। उन्होंने शिवाजी महाराज की विरासत को मनाने और लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने के तरीके के रूप में शिवजयंती मनाना शुरू किया।(shiv jayanti 2025)
स्वराज्य की स्थापना –
शिवाजी महाराज ने युवा अवस्था में ही स्वतंत्रता की लौ जलाई। 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार तोरणा किले पर कब्ज़ा किया और मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई किलों को जीतकर अपनी ताकत बढ़ाई। शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना के लिए कई युद्ध लड़े और मुगलों, आदिलशाही और पुर्तगालियों से टकराए।
उन्होंने छापामार युद्ध नीति (गुरिल्ला वॉरफेयर) को अपनाकर अपनी सेना को एक मजबूत स्वरूप दिया। यह रणनीति विशेष रूप से मुगलों के खिलाफ बेहद प्रभावी रही। शिवाजी महाराज की युद्ध तकनीकें और प्रशासनिक कौशल उन्हें अन्य शासकों से अलग बनाती थीं।
मुगलों के खिलाफ संघर्ष –
शिवाजी महाराज और मुगल साम्राज्य के बीच संघर्ष लंबे समय तक चला। औरंगजेब ने अपने सेनापति शाहिस्ता खान को शिवाजी को रोकने के लिए भेजा, लेकिन शिवाजी ने एक साहसिक योजना के तहत रात में शाहिस्ता खान के किले पर हमला किया और उसे पराजित किया।
1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाकर धोखे से कैद कर लिया, लेकिन अपनी चतुराई से शिवाजी महाराज वहां से बच निकले। यह घटना उनकी बुद्धिमत्ता और साहस को दर्शाती है।
अफजल खान का वध और प्रतापगढ़ विजय –
1659 में बीजापुर सल्तनत ने शिवाजी महाराज को रोकने के लिए अफजल खान को भेजा। अफजल खान एक क्रूर और शक्तिशाली सेनानायक था, जिसने कई मराठा गांवों को नष्ट कर दिया था। शिवाजी ने अपनी बुद्धिमानी और रणनीति से अफजल खान का वध किया और प्रतापगढ़ की ऐतिहासिक विजय प्राप्त की।
यह जीत शिवाजी महाराज के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक बनी और उनके राज्य का विस्तार हुआ। इस घटना ने यह साबित किया कि मराठा शक्ति को कमजोर करना आसान नहीं था।
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक –
1674 में रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई। इस समारोह के साथ मराठा साम्राज्य एक सशक्त शक्ति के रूप में स्थापित हुआ। उन्होंने एक संगठित प्रशासन, मजबूत सेना और प्रभावी न्याय व्यवस्था बनाई, जिससे उनके राज्य में शांति और समृद्धि बनी रही।
शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार –
शिवाजी महाराज केवल एक महान योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने प्रशासन में कई सुधार किए:
- संगठित सेना: उन्होंने एक मजबूत और अनुशासित सेना तैयार की, जो उनकी छापामार युद्धनीति में माहिर थी।
- कर प्रणाली: किसानों को अधिक राहत देने के लिए उन्होंने कर प्रणाली को सरल बनाया।
- नौसेना का विकास: उन्होंने भारत की पहली संगठित नौसेना स्थापित की, जिससे समुद्री आक्रमणों को रोकने में मदद मिली।
- धार्मिक सहिष्णुता: शिवाजी महाराज ने सभी धर्मों का सम्मान किया और कभी भी धार्मिक भेदभाव नहीं किया।
शिवाजी महाराज की विरासत –
1680 में शिवाजी महाराज का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवंत है। उनके द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य ने आगे चलकर भारत में मुगलों के प्रभाव को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी नीतियां, युद्ध तकनीक और प्रशासनिक सुधार आज भी प्रासंगिक हैं। शिवाजी महाराज का जीवन हमें स्वतंत्रता, निडरता और न्याय की प्रेरणा देता है।
शिवाजी जयंती का महत्व –
शिवाजी महाराज की जयंती पूरे भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र में बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। इस दिन लोग उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हैं, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
आज भी शिवाजी महाराज की गाथाएं हर पीढ़ी को प्रेरित करती हैं। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस और नीतियों से भारत के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी।
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