diwali puja katha hindi- भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली, जिसे ‘दिवाली’ भी कहा जाता है। हर साल यह त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है, जो अंधकार को मिटाने और प्रकाश की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है।
diwali 2024 – प्रकाश और उल्लास का पर्व
diwali puja katha hindi- भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली, जिसे ‘दिवाली‘ भी कहा जाता है। हर साल यह त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है, जो अंधकार को मिटाने और प्रकाश की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है। 2024 में दिवाली 1 नवंबर को मनाई जाएगी। इस पर्व के पीछे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं लेकिन इसकी मूल भावना एक ही है, बुराई पर अच्छाई की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की जीत और अंधकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान।
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- दिवाली का धार्मिक महत्व
diwali puja katha hindi- दिवाली का महत्व हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ है, लेकिन यह पर्व जैन, सिख और बौद्ध धर्मों में भी विशेष स्थान रखता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, दीवाली उस दिन को चिन्हित करती है जब भगवान राम, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। राम की वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए दीप जलाए थे और पूरे नगर को रोशनी से सजाया था। यही कारण है कि इस दिन को ‘प्रकाश का पर्व’ कहा जाता है।
जैन धर्म में, दिवाली महावीर स्वामी की निर्वाण प्राप्ति का पर्व है। 527 ईसा पूर्व में महावीर स्वामी ने इस दिन मोक्ष प्राप्त किया था, और जैन धर्मावलंबी इसे आत्मज्ञान और शांति का प्रतीक मानते हैं।
सिख धर्म में, दिवाली का संबंध गुरु हरगोबिंद जी की कैद से रिहाई से है, जिसे ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को सिख समुदाय विशेष महत्व देता है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक मानता है।
- दिवाली का सांस्कृतिक महत्व
diwali puja katha hindi- धार्मिक मान्यताओं के अलावा, दिवाली का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत गहरा है। घरों और मंदिरों में पूजा-अर्चना का दिन होता है, इसे सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर भी माना जाता है। लोग इस दिन अपने घरों की सफाई करते हैं, दीवारों को रंगते हैं, और रंगोली से आंगन को सजाते हैं। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, विशेषकर मिठाइयाँ जैसे लड्डू, गुलाब जामुन, और बर्फी। इस दिन नए वस्त्र धारण करना और उपहारों का आदान-प्रदान करना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है।
बाजारों में भी दीवाली के अवसर पर बहुत चहल-पहल होती है। लोग अपने परिवारों और मित्रों के लिए उपहार खरीदते हैं, जिसमें मिठाइयाँ, ड्राई फ्रूट्स, और सजावटी सामान प्रमुख होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक वस्त्रों, गहनों और अन्य कीमती चीजों की भी खूब खरीदारी होती है। दीयों और मोमबत्तियों की रोशनी से सजे बाजार दीवाली की असली रंगत को दर्शाते हैं।
diwali faral
diwali puja katha hindi- दिवाली का पर्व केवल रोशनी और खुशियों का ही नहीं, बल्कि स्वादिष्ट व्यंजनों का भी होता है। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के पकवान और स्नैक्स तैयार किए जाते हैं, जिन्हें “diwali faral” कहा जाता है। diwali faral महाराष्ट्र और कुछ अन्य हिस्सों में खासतौर से दीवाली के दौरान तैयार की जाने वाली खास डिशों को कहा जाता है।
- चिवड़ा – यह हल्का और कुरकुरा स्नैक है जिसे पोहा, मूंगफली, चने और मसालों से तैयार किया जाता है। इसे हर उम्र के लोग पसंद करते हैं।
- लड्डू – बेसन, मोतीचूर और नारियल के लड्डू दिवाली के खास मीठे व्यंजन होते हैं। लड्डू त्योहार के दौरान मिठास बढ़ाते हैं।
- करंजी (गुजिया) – यह मीठी पकवान होती है, जिसे मैदे की परत में नारियल और सूखे मेवों का मिश्रण भरकर तला जाता है। यह दिवाली का खास पकवान है।
- शंकरपाळे – यह एक मीठा स्नैक है जिसे आटे और चीनी से तैयार कर तला जाता है। इसे लंबी अवधि तक स्टोर किया जा सकता है और यह बहुत लोकप्रिय है।
- अनरसे – अनरसे महाराष्ट्र की खास मिठाई है, जो चावल के आटे और गुड़ से तैयार की जाती है।
- चकली – चकली एक कुरकुरा और मसालेदार नाश्ता है, जो चावल के आटे, उरद दाल और तिल से बनाया जाता है। इसे घी या तेल में तला जाता है।
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- भगवान राम की अयोध्या वापसी
दिवाली की सबसे प्रचलित कथा भगवान राम की है। रामायण के अनुसार, जब भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 वर्षों का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए पूरे नगर को दीपों से सजाया था। भगवान राम की वापसी अमावस्या की रात को हुई थी, इसलिए पूरे अयोध्या नगर में दीयों की रोशनी से प्रकाश फैलाया गया। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जहां रावण जैसे अधर्मी का अंत भगवान राम ने कर दिया और धर्म की स्थापना की। तब से ही यह परंपरा चलती आ रही है कि दिवाली के दिन दीप जलाकर राम के स्वागत की तरह हम अपने घरों में रोशनी करते हैं।
- माता लक्ष्मी की उत्पत्ति
एक अन्य महत्वपूर्ण कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन के समय, लक्ष्मी माता का जन्म हुआ था। यह वह समय था जब देवता और असुर मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। इस मंथन के दौरान, अमृत के साथ-साथ कई अद्भुत रत्न, वस्त्र और धन संपत्ति उत्पन्न हुई, और इन्हीं में से लक्ष्मी देवी का प्राकट्य हुआ। लक्ष्मी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है, और दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि अमावस्या की इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति सच्चे मन से उनकी पूजा करता है, उसे माता लक्ष्मी आशीर्वाद देती हैं।
- नरकासुर वध (छोटी दीवाली)
नरकासुर वध की कथा भी दिवाली से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि नरकासुर नामक असुर ने देवताओं और ऋषियों को परेशान कर रखा था। उसने 16,000 कन्याओं को बंदी बना लिया था और स्वर्ग पर अधिकार करने का प्रयास किया था। तब भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया। इस दिन को नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और इस दिन लोग दीप जलाकर भगवान कृष्ण की जय-जयकार करते हैं।
- राजा बलि और वामन अवतार
दिवाली की एक और प्रचलित कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी हुई है। राजा बलि, जो कि एक महान दानवीर और असुर राजा थे, ने अपने बल से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे बलि के अहंकार का नाश करें।
भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा। बलि ने वामन को भूमि देने का वचन दे दिया। तब भगवान विष्णु ने अपने वामन रूप में एक पग में आकाश, दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया, और तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। दिवाली पर बलि पूजा भी की जाती है, विशेषकर दक्षिण भारत में।
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- मूर्ति या तस्वीरें – भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर।
- दीया – मिट्टी के दीये या तेल के दीये, घी के दीपक।
- रुई की बत्तियां – दीप जलाने के लिए।
- धूप-दीप – अगरबत्ती, धूपबत्ती।
- कपूर – आरती के लिए।
- फूल और माला – विशेषकर गुलाब, गेंदे या कमल के फूल।
- चंदन – तिलक लगाने के लिए।
- हल्दी और कुमकुम – पूजन में उपयोग के लिए।
- धनिया के बीज – पूजा में धन-धान्य के प्रतीक के रूप में।
- सुपारी, पान, लौंग और इलायची – पूजन सामग्री।
- नारियल – पूजन के लिए।
- चावल (अक्षता) – पूजा के दौरान चढ़ाने के लिए।
- मिठाई – भोग लगाने के लिए।
- फल – पूजा में अर्पण के लिए।
- पानी का कलश – पवित्र जल के लिए।
- चौकी और लाल कपड़ा – मूर्तियों को स्थापित करने के लिए।
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पूजा के लिए एक स्वच्छ चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्तियों को चौकी के मध्य स्थापित करें। लक्ष्मी जी को गणेश जी के दाहिनी ओर रखें। इसके अलावा, चौकी पर एक कलश रखें, जो समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक होता है। पूजा के प्रारंभ में सबसे पहले गणेश जी की वंदना करें, क्योंकि गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है। पूजा की थाली में हल्दी, कुमकुम और अक्षत (चावल) लेकर भगवान गणेश को तिलक करें और फिर उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें। इसके बाद लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए उन्हें भी तिलक करें और पुष्प अर्पित करें।
कलश को लक्ष्मी जी के पास रखें और उसमें गंगाजल डालें। कलश के मुख पर आम के पत्ते और नारियल रखें। इसे वरुण देवता का प्रतीक माना जाता है और इसे पूजा स्थल पर स्थापित करने से समृद्धि और पवित्रता आती है। लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्तियों को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) से स्नान कराएं। इससे मूर्तियाँ शुद्ध हो जाती हैं। पंचामृत स्नान के बाद मूर्तियों को स्वच्छ जल से धोकर उन्हें सूखे कपड़े से पोंछ लें। लक्ष्मी जी के पूजन में विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। उन्हें कमल का फूल अर्पित करें, क्योंकि यह उनका प्रिय फूल है।
लक्ष्मी जी के चरणों में चांदी या सोने के सिक्के रखें, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। इसके बाद लक्ष्मी जी को मिठाई, खील-बताशे, और फल अर्पित करें। लक्ष्मी पूजन में धनिया बीज और चांदी के सिक्कों का विशेष महत्व होता है। धनिया के बीज को लक्ष्मी जी के चरणों में अर्पित करें और इसे अगले दिन घर की तिजोरी या धन रखने वाली जगह पर रखें। यह आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक होता है। पूजा के दौरान धूप, अगरबत्ती और दीपक जलाएं। यह पूजा स्थल को पवित्र और शुद्ध बनाता है। दीपक जलाते समय, ध्यान रखें कि दीया पूर्व दिशा की ओर रखा जाए, क्योंकि इसे शुभ माना जाता है।
पूजा के अंत में लक्ष्मी-गणेश जी की आरती करें। आरती के दौरान सभी लोग मिलकर “ॐ जय लक्ष्मी माता” और “ॐ गण गणपतये नमः” जैसे मंत्रों का उच्चारण करें। आरती के बाद सभी को आरती का प्रसाद दें और घर में बांटें। पूजा के समापन के बाद लक्ष्मी जी से घर में सुख-समृद्धि और शांति की कामना करें। गणेश जी से सभी विघ्नों के नाश और सफलता की प्रार्थना करें। इसके बाद सभी सदस्य हाथ जोड़कर माता लक्ष्मी और गणेश जी से आशीर्वाद प्राप्त करें।
पटाखे चलाने की परंपरा
diwali puja katha hindi- दिवाली के दिन पटाखे जलाने की परंपरा भी है, जो उत्सव की खुशी और उल्लास का प्रतीक होती है। हालांकि, अब पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण लोग कम प्रदूषण वाले या इको-फ्रेंडली पटाखों का उपयोग करने लगे हैं। आप भी ध्यान रखें कि पटाखे जलाते समय सुरक्षा का ध्यान रखें और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं।
दिवाली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। 2024 की दिवाली भी हर बार की तरह प्रकाश और खुशियों का संदेश लाएगी और हमें यह भी याद दिलाएगी कि बुराई चाहे जितनी भी बड़ी हो, अंत में अच्छाई की ही विजय होती है। यह पर्व हमें आत्मनिरीक्षण करने, अपने परिवार और समाज के साथ एकजुट होकर खुशियाँ मनाने, और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने का अवसर प्रदान करता है। दिवाली का सही अर्थ तभी पूर्ण होता है जब हम अपने जीवन में भी इस पर्व के मूल्यों को उतारें और एक सकारात्मक और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें।
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