Shree Krishna: भगवान श्री कृष्ण, जिन्हें “माखन चोर”, “गोवर्धन धारी”, और “कृष्णा” के नाम से पूजा जाता है, दिव्य प्रेम और अनंत ज्ञान के प्रतीक हैं। उनकी हर लीला और उनकी हर मुस्कान में एक अद्भुत आकर्षण है। आज हम इस लेख में उनकी जानकारी देने वाले है, आइए जानते है उनका जन्म कैसे हुआ और उन्होंने रात में ही क्यूँ जन्म लिया।
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भगवान श्री कृष्ण का नाम कृष्ण कैसे पड़ा?
Shree Krishna: भगवान श्री कृष्ण का नाम “कृष्ण” शब्द संस्कृत के “कृष” (जो अर्थ है ‘खींचना’ या ‘आकर्षित करना’) और “ना” (जो अर्थ है ‘सुख’ या ‘आनंद’) से जुड़ा हुआ है। उनकी भव्यता, सौंदर्य, और प्रेम ने लोगों को उनके प्रति आकर्षित किया, और यही कारण है कि उन्हें “कृष्ण” के नाम से पुकारा गया।
भागवत पुराण में लिखी जन्मकथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। रोहिणी चंद्रदेव की प्रिय पत्नी और नक्षत्र भी हैं। वहीं, अष्टमी तिथि को माता शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस कारण से भगवान श्रीकृष्ण को शक्ति स्वरूप और परब्रह्म कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वंय में समेटे हुए हैं।(Shree Krishna Photo)
श्री कृष्ण के नामों के विभिन्न रूप
Shree Krishna Names
- वासुदेव: उनका जन्म वासुदेव और देवकी के घर में हुआ था, इसलिए उन्हें यह नाम भी दिया गया।
- गोविंद: जो गायों के रक्षक और पालनहार हैं।
- गोपाल: जो गोवों के रखवाले और रक्षक हैं।
- मुरलीधर: जो बांसुरी बजाने वाले हैं।
- नंदलाल: नंद बाबा के पुत्र के रूप में उन्हें यह नाम मिला।
श्री कृष्ण ने चंद्रदेव की इच्छा को कैसे पूरा किया?
Shree Krishna: पौराणिक कहानियों के अनुसार चंद्रदेव की यह इच्छा थी कि विष्णु जी जब भी पृथ्वी पर अवतार लें, वे चंद्रदेव के प्रकाश में ही धरती पर आएं, जिससे कि चंद्रदेव प्रत्यक्ष रूप से उनके दर्शन कर सकें, इसलिए जब श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, तो संपूर्ण वातावरण प्रकाशमान हो गया था। संपूर्ण वातावरण में सकारात्मकता छा गई थी।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कहानी
Jai Shree Krishna Images: भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, जब मथुरा के अत्याचारी राजा कंस का शासन था। भगवान कृष्ण का जन्म एक दिव्य घटना के रूप में हुआ और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कंस, जो मथुरा का राजा था, अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव के घर आने वाले उनके आठवें पुत्र से भयभीत था। एक दिन, कंस ने एक ऋषि से सुना कि देवकी का आठवां पुत्र ही उसका विनाश करेगा। यह सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को बंदी बना लिया और उन पर कड़ी निगरानी रखना शुरू कर दिया। वह जानता था कि देवकी का प्रत्येक पुत्र उसके लिए खतरे का कारण बन सकता है, इसलिए उसने हर जन्मे बच्चे को मार डाला।
लेकिन जब देवकी ने आठवें पुत्र को जन्म दिया, तो यह बच्चा कोई सामान्य बच्चा नहीं था, बल्कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे। जैसे ही देवकी ने अपने आठवें पुत्र को जन्म दिया, एक दिव्य चमत्कार हुआ। जेल की कड़ी दीवारें टूट गईं और एक अलौकिक प्रकाश पूरे कारागार में फैल गया। भगवान श्री कृष्ण का रूप अद्वितीय था, और उनके जन्म के साथ ही देवकी और वासुदेव को भगवान के आशीर्वाद का अनुभव हुआ।
श्री कृष्ण के जन्म के समय, वासुदेव ने अपने बेटे को उठाया और उसे गोकुल में अपने मित्र नंद बाबा और यशोदा के पास भेज दिया। यह चमत्कारी घटना थी, जिसमें श्री कृष्ण ने अपने जन्म से पहले ही कंस के अत्याचारों को समाप्त करने का संदेश दिया।
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श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, जिसे हम कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। यह दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी में हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर भारत में।
अपने पूर्वजों की उपस्थिति में लिया श्रीकृष्ण ने जन्म
Shree Krishna: पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रिकाल में इसलिए जन्म लिया था क्योंकि चंद्रमा रात्रि के समय संपूर्ण जगत को प्रकाशमान करता है। चंद्रवंशी कृष्ण ने अपने पूर्वज की उपस्थिति में धरती पर जन्म लेने का यह पहर चुना। इस कारण से जन्माष्टमी के व्रत को चांद निकलने के बाद और उनके दर्शन करने के बाद ही पूर्ण किया जाता है।
कंस का वध
Shree Krishna: जब श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम बड़े हो गए, तो कंस को उनके अस्तित्व के बारे में जानकारी मिली। कंस ने उन्हें मारने के लिए कई राक्षस भेजे, लेकिन श्री कृष्ण ने उन सभी का नाश कर दिया। अंततः कंस ने श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने का षड्यंत्र रचा। उसने यह सोचकर एक योजना बनाई कि वह उन्हें अपने राजमहल में बुलाकर समाप्त कर देगा।
कंस ने धनुर्यज्ञ का आयोजन किया और श्री कृष्ण और बलराम को उसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। जब वे मथुरा पहुँचे, तो कंस ने उन्हें रोकने के लिए एक क्रूर हाथी “कुबलयापीड़” को छोड़ दिया, लेकिन श्री कृष्ण ने अपने पराक्रम से उस हाथी का वध कर दिया।
इसके बाद कंस ने अपने शक्तिशाली पहलवानों, जैसे चाणूर और मुष्टिक, को कृष्ण और बलराम के खिलाफ कुश्ती करने के लिए भेजा। लेकिन श्री कृष्ण और बलराम ने अपनी दिव्य शक्ति का उपयोग करके उन पहलवानों को पराजित कर दिया।
अखाड़े में पहलवानों को पराजित करने के बाद, श्री कृष्ण सीधे कंस के सिंहासन की ओर बढ़े। कंस ने जैसे ही श्री कृष्ण को अपनी ओर आते देखा, वह डर से कांपने लगा। श्री कृष्ण ने उसे उसके सिंहासन से नीचे खींचा और उसके साथ युद्ध किया। कंस ने पूरी शक्ति के साथ लड़ने की कोशिश की, लेकिन भगवान श्री कृष्ण के सामने वह असहाय हो गया। अंततः श्री कृष्ण ने कंस को ज़मीन पर पटक कर उसका वध कर दिया।(Shree Krishna Photo)
Shree Krishna In Hindi: कंस का वध अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि अत्याचारी चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसे धर्म के सामने झुकना ही पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण ने न केवल अपने माता-पिता को कंस के कैद से मुक्त किया, बल्कि सम्पूर्ण मथुरा को भी भय और अत्याचार से आज़ादी दिलाई।
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