manvat web series- 1972 का मानवत हत्याकांड अब वेब सीरीज़ में, जानें पूरी सच्चाई

manvat web series- अगर आप सच्ची घटनाओं पर आधारित क्राइम थ्रिलर सीरीज़ के शौकीन हैं, तो “मानवत वेब सीरीज़” आपके लिए एक परफेक्ट चॉइस हो सकती है। यह वेब सीरीज़ महाराष्ट्र के छोटे से गाँव मानवत में 1972 में घटित भयानक हत्याकांड पर आधारित है, जिसने पूरे राज्य और देश को हिलाकर रख दिया था।

इस कहानी विस्तार

manvat web series- 1972 का साल परभणी जिले के मानवत गाँव के लोगों के लिए भय और आतंक का साल था। दिसंबर 1972 से लेकर अगले कुछ महीनों में इस छोटे से गाँव में एक के बाद एक सात हत्याएँ हुईं। इन हत्याओं का शिकार ज्यादातर 10 से 12 साल की लड़कियाँ थीं, और इनके तरीके ने पूरे परभणी और महाराष्ट्र को हिला कर रख दिया था। लोग इतने डरे हुए थे कि उन्होंने रात के समय बाहर निकलना बंद कर दिया था। इन हत्याओं के पैटर्न और निर्दयता ने प्रशासन को इस मामले की गंभीरता से जाँच करने के लिए मजबूर कर दिया।

“मानवत वेब सीरीज़” की कहानी उन 10 से 12 साल की निर्दोष लड़कियों की हत्याओं की है, जिन्हें एक अंधविश्वासी तांत्रिक अनुष्ठान का शिकार बनाया गया। सीरीज़ में दिखाया गया है कि कैसे रमाकांत कुलकर्णी, एक तेज-तर्रार CID अधिकारी, इस अंधविश्वास और अपराध की गुत्थियों को सुलझाते हैं। अपराधियों की मानसिकता, उनका तांत्रिक विश्वास, और जाँच के दौरान आने वाली चुनौतियाँ इस सीरीज़ को और भी रोमांचक बनाती हैं।

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प्रारंभिक जाँच और विफलता

manvat web series- स्थानीय पुलिस इन हत्याओं को रोकने में विफल रही थी। किसी भी ठोस सुराग के अभाव में पुलिस के पास कोई ठोस दिशा नहीं थी। हत्याएँ लगातार हो रही थीं, और गाँव वालों के बीच अफवाहें फैलने लगीं कि ये हत्याएँ किसी अज्ञात शक्ति या अंधविश्वास के कारण हो रही हैं। हर हत्या में एक समान पैटर्न था जिस पीड़िता की हत्या बेहद क्रूर तरीके से की जाती थी, जिससे यह साफ था कि हत्यारा या हत्यारे संगठित तरीके से काम कर रहे थे। इन घटनाओं ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग को चिंता में डाल दिया था।

रमाकांत कुलकर्णी कौन है ?

manvat web series- रमाकांत कुलकर्णी का जन्म कर्नाटक के आवेरसा गाँव में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एक छात्रवृत्ति प्राप्त की। अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए वे मुंबई आए, जहाँ उन्होंने अपने चाचा के साथ रहकर पदवी की पढ़ाई की। उनके चाचा के एक परिचित की मदद से उन्हें सेंट्रल बैंक में नौकरी मिल गई, जहाँ उनकी तनख्वाह मात्र 60 रुपये थी। इन 60 रुपये का भी उनके लिए बहुत महत्व था, क्योंकि इससे वे अपनी शिक्षा पूरी कर सके।

1947 के विभाजन के समय उन्होंने फिलॉसफी और साइकोलॉजी में अपनी पदवी की पढ़ाई “एलीफैंटो कॉलेज” से पूरी की, जो कि कैन्टोनमेंट के अधिकारियों के लिए शुरू किया गया था। भले ही उनके पास बैंक की नौकरी और पदवी की डिग्री थी, लेकिन उनकी इच्छा आगे पढ़ाई करने की थी। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने सरकारी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई शुरू की। इसी दौरान उनके मन में IPS अधिकारी बनने का सपना भी जागृत होने लगा, और उन्होंने 1954 में UPSC की परीक्षा उत्तीर्ण की।

उनकी पहली नियुक्ति अहमदाबाद में सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) के रूप में हुई। उस समय गुजरात में सीमा विवाद के कारण दंगे हो रहे थे, और इस नई परिस्थिति में बिना किसी अनुभव के, कुलकर्णी ने अहमदाबाद में दंगों को सफलतापूर्वक रोक दिया। उनकी इस उपलब्धि ने वरिष्ठ अधिकारियों के बीच उनकी सराहना कराई और इसके बाद उनका हस्तांतरित पुणे कर दिया गया।

1957 में पुणे की एक पारसी महिला के घर से लाखों रुपये की चोरी हुई। रमाकांत कुलकर्णी ने इस केस को एक रात में बिना किसी सुराग के सुलझा लिया, जिससे पुणे में उनका नाम एक चतुर पुलिस अधिकारी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इसके बाद उन्हें बीड जिले में पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया, जहाँ उस समय एक डाकू गिरोह ने आतंक मचा रखा था। कुलकर्णी ने गहन अध्ययन और शोध करके कुछ ही दिनों में इस गिरोह को पकड़ लिया, जिससे बीड जिले का आतंक समाप्त हो गया। इसी शैली के कारण सीबीआई ने उन्हें एक तस्करी के मामले की जांच के लिए चुना।

वोलकॉट और डोनझे नाम के दो व्यक्तियों ने भारत से 1000 किलोग्राम सोने की तस्करी की थी, और उनका कोई पता नहीं चल रहा था। कुलकर्णी ने पता लगाया कि वे गोवा में तस्करी की योजना बना रहे थे। गोवा से भागकर वे दिल्ली और फिर मुंबई भागते रहे, लेकिन कुलकर्णी ने एक विदेशी कुत्ते की मदद से उन्हें पकड़ लिया। इस मामले में कुलकर्णी की सूझबूझ ने उन्हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया और उन्हें मुंबई में डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस के पद पर पदोन्नत किया गया।

1968 में मुंबई में एक सिर पर मारकर हत्या करने वाला सीरियल किलर सामने आया, जिसने पूरे शहर को दहशत में डाल दिया। कुलकर्णी ने इस पैटर्न को समझा और जल्दी ही रमण राघव नामक संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना ने उन्हें एक राष्ट्रीय हीरो बना दिया।

लेकिन उनके करियर की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1972 में मानवत हत्याकांड थी। मानवत, परभणी जिले में 13 महीनों के दौरान 11 हत्याएं हुईं, जिनमें ज्यादातर 10-12 साल की लड़कियाँ थीं। तो आइए मानवत हत्याकांड के बारे में पूरी जानकारी लेते है।

रामााकांत कुलकर्णी की नियुक्ति

manvat web series- मामले की गंभीरता को देखते हुए, तत्कालीन गृह मंत्री ने इस मामले की जाँच के लिए मुंबई CID के वरिष्ठ अधिकारी रमाकांत कुलकर्णी को नियुक्त किया। यह पहली बार था जब किसी CID अधिकारी को राज्य से बाहर किसी मामले की जाँच के लिए भेजा गया था। कुलकर्णी को इस केस की जाँच में इसलिए भी बुलाया गया था, क्योंकि वे अपनी सूझबूझ, अपराधियों की मानसिकता को समझने की क्षमता और कठिन मामलों को सुलझाने के लिए मशहूर थे। उन्हें विश्वास था कि इन हत्याओं के पीछे कोई गहरा अंधविश्वास या धार्मिक विश्वास हो सकता है।

जाँच की शुरुआत कैसे हुई

manvat web series- मानवत पहुँचकर रमाकांत कुलकर्णी ने सबसे पहले हत्याओं की बारीकी से समीक्षा की। उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि यह कोई साधारण अपराध नहीं है। सभी हत्याओं में समानताएँ थीं सभी पीड़ित युवा लड़कियाँ थीं, और उनकी हत्या के तरीके ने संकेत दिया कि यह हत्याएँ किसी धार्मिक अनुष्ठान या बलि का हिस्सा हो सकती हैं, कुलकर्णी को इन हत्याओं के पीछे अंधविश्वास और मानव बलि का शक हुआ। इसके साथ ही, इन हत्याओं में एक निश्चित समय और स्थान का चयन किया गया था, जिससे कुलकर्णी को विश्वास हो गया कि हत्यारे अंधविश्वास के चंगुल में फँसे हुए हैं और किसी विशेष तांत्रिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए इन हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं।

उन्होंने सबूतों का पीछा कैसे किया

manvat web series- जाँच के दौरान कुलकर्णी और उनकी टीम ने गाँववालों से पूछताछ की और पिछले हत्याकांडों के बारे में जानकारी जुटाई। वे प्रत्येक हत्या के स्थान का निरीक्षण करने लगे और संभावित सबूतों की तलाश में जुट गए। धीरे-धीरे, कुलकर्णी को एक महत्वपूर्ण सुराग मिला। एक हत्या के दौरान, अपराधी कुछ सबूत छोड़ गए थे, जिनके आधार पर कुलकर्णी ने संभावित संदिग्धों की पहचान की। इन सबूतों से वे रुक्मिणी और उत्तमराव बाराते नाम के एक दंपति तक पहुँचे, जिन पर उन्होंने हत्याओं में शामिल होने का शक किया।

आख़िरकार सच का खुलासा हो ही गया

manvat web series- कुलकर्णी ने बाराते दंपति को हिरासत में लेकर गहन पूछताछ की। पूछताछ के दौरान यह खुलासा हुआ कि वे एक तांत्रिक अनुष्ठान का हिस्सा थे, जिसमें यह विश्वास किया गया था कि 10 से 12 साल की मासूम लड़कियों की बलि चढ़ाने से उन्हें दिव्य शक्तियाँ प्राप्त होंगी। रुक्मिणी और उत्तमराव अंधविश्वास और तांत्रिक गतिविधियों में लिप्त थे, और उन्होंने इन हत्याओं को एक अनुष्ठानिक बलि के रूप में अंजाम दिया था।

इस क्रूर और भयानक सच का खुलासा होते ही पूरे महाराष्ट्र और देश में सनसनी फैल गई। मानवत हत्याकांड न केवल एक संगठित अपराध था, बल्कि यह समाज में फैले अंधविश्वास और तांत्रिक प्रथाओं का भयावह चेहरा था। इस मामले ने महाराष्ट्र सरकार और समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि किस तरह अंधविश्वास और धार्मिक निर्दोष लोगों की जान ले सकती हैं। रुक्मिणी और उत्तमराव बाराते को उनकी क्रूर हत्याओं के लिए गिरफ्तार किया गया और अदालत में पेश किया गया। कुलकर्णी की सटीक जाँच और सूझबूझ के कारण इस अपराध के दोषियों को सजा मिली और पूरे मामले का अंत हुआ। इस केस ने रमाकांत कुलकर्णी की प्रतिष्ठा को और भी ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।

यह वेब सीरिज़ क्यों देखनी चाहिए

“मानवत वेब सीरीज़” उन लोगों के लिए है जो सच्ची घटनाओं पर आधारित थ्रिलर का मज़ा लेना चाहते हैं। यह सीरीज़ आपको न केवल अपराध की तह तक ले जाती है, बल्कि समाज में फैले अंधविश्वास और तांत्रिक प्रथाओं के घिनौने सच से भी रूबरू कराती है। थ्रिलर, सस्पेंस और सच्चाई की खोज से भरी यह वेब सीरीज़ आपको आखिरी एपिसोड तक बांधे रखेगी।

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